नयी दिल्ली। सोमवार, 4 अप्रैल, सन् 2011 को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से रेवती नक्षत्र में विक्रम संवत् 2068 भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ हो रहा है। साथ ही वासंतिक नवरात्र का पावन पर्व भी आज ही प्रारंभ हो रहा है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है।
भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत् को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।
भारतवर्ष में इस समय देशी तथा विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत् यदि कोई है तो वह विक्रम संवत् ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष पूर्व यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम संवत् का भी आरम्भ हुआ था।
पुराणों के अनुसार इसी तिथि से ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। पंचांगों के अनुसार इस नए संवत्सर का नाम 'क्रोधी" संवत्सर है जिसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार और महंगाई के विरुद्ध जन-आक्रोश भड़कने की सम्भावनाएं अधिक हैं। संवत्सर का राजा चंद्रमा होने के कारण जनता में आपसी सौहार्द तथा प्रेमभावना की अभिवृद्धि का योग है तो मंत्री गुरु होने के कारण धन-धान्य तथा अच्छी फसल होने के भी संकेत हैं।
अवनीश। 04 अप्रैल, 2011
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