शनिवार, 26 मार्च 2011

मध्य प्रदेश के कालेजों में छात्राएं असुरक्षित : अभाविप

मध्य प्रदेश के कालेजों में छात्राएं असुरक्षित : अभाविप

भोपाल। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने कहा है कि मध्य प्रदेश के शिक्षा परिसरों में छात्राएं असुरक्षित हैं और उनके शोषण की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। संगठन ने इन मामलों की जांच के लिए एक आयोग बनाने और विश्वविद्यालयों में महिला प्रकोष्ठ गठित करने की मांग सरकार से की है।

अभाविप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री विष्णुदत्त शर्मा के मुताबिक इस संबंध में राज्य सरकार से 280 शिकायतें की गई, मगर कोई कार्रवाई नहीं होने से छात्राओं का शोषण करने वालों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। शर्मा ने कहा कि छात्रावासों में रहने वाली छात्राएं सुरक्षित नहीं हैं। शर्मा ने जबलपुर के सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कालेज में किस्मत के बदले अस्मत, ग्वालियर के फिजिकल डिपार्टमेंट की छात्रा का विभागाध्यक्ष द्वारा शोषण और खंडवा के कृषि महाविद्यालय की घटना का उदाहरण देते हुए मौजूदा हालातों पर चिंता जताई। अभाविप नेता ने कहा कि भले ही प्रदेश में भाजपा की सरकार हो पर विश्वविद्यालयों और कालेज परिसरों के जो हालात हैं, उनको सामने लाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। उन्होंने कहा कि छात्राओं के शोषण के मामलों का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि ज्यादातर प्रकरणों में गुरुओं की भूमिका सवालों के घेरे में है। उन्होंने पिछले दिनों खंडवा के कृषि महाविद्यालय में छात्रा के कथित उत्पीड़न के मामले में एक प्राध्यापक के मुंह पर कालिख पोतने से सदमे में आए उनके साथी प्राध्यापक सुरेंद्र सिंह ठाकुर की मौत के मामले में भी सफाई दी और कहा कि वह इस घटना का समर्थन नहीं करते। शर्मा के अनुसार जबलपुर चिकित्सा महाविद्यालय में परीक्षा में अंक दिए जाने के नाम पर छात्राओं के साथ जो हुआ वह किसी से छिपा नहीं है। भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में एक छात्रा को गोली मार दी गई थी, जिसमें कई नेताओं के नाम भी सामने आए थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि अभाविप छात्र हितों की लड़ाई लड़ने वाला संगठन है और वह उससे डिगेगा नहीं। उन्होंने बताया कि एबीवीपी ने अपने रुख से राज्य सरकार को अवगत करा दिया है। अवनीश। 22 मार्च, 2011

बुधवार, 23 मार्च 2011

अमर शहीद सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव

शहीद-ए-आज़म अमर शहीद सरदार भगत सिंह

भारत के शहीद-ए-आज़म अमर शहीद सरदार भगतसिंह का नाम विश्व में 20वीं शताब्दी के अमर शहीदों में बहुत ऊँचा है। (जन्म- 27 सितंबर, 1907 ई., लायलपुर,पंजाब, मृत्यु- 23 मार्च, 1931 ई., लाहौर, पंजाब)। भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है। भगतसिंह अपने देश के लिये ही जीये और उसी के लिए शहीद भी हो गये।

जीवन परिचय

भगतसिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के ज़िला लायलपुर में बंगा गाँव (पाकिस्तान) में हुआ था, एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था, जिसका अनुकूल प्रभाव उन पर पड़ा था। भगतसिंह के पिता 'सरदार किशन सिंह' एवं उनके दो चाचा 'अजीतसिंह' तथा 'स्वर्णसिंह' अंग्रेज़ों के ख़िलाफ होने के कारण जेल में बन्द थे । जिस दिन भगतसिंह पैदा हुए उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया । इस शुभ घड़ी के अवसर पर भगतसिंह के घर में खुशी और भी बढ़ गयी थी । भगतसिंह की दादी ने बच्चे का नाम 'भागां वाला' (अच्छे भाग्य वाला) रखा । बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा । वे 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रान्तिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बन्धन में बाँधने की तैयारियाँ होने लगी तो वेलाहौर से भागकर कानपुर आ गये।

कानपुर में उन्हें श्री गणेश शंकर विद्यार्थी का हार्दिक सहयोग भी प्राप्त हुआ। देश की स्वतंत्रता के लिए अखिल भारतीय स्तर पर क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन करने का श्रेय सरदार भगतसिंह को ही जाता है। उन्होंने कानपुर के 'प्रताप' में 'बलवंत सिंह' के नाम से तथा दिल्ली में 'अर्जुन' के सम्पादकीय विभाग में 'अर्जुन सिंह' के नाम से कुछ समय काम किया और अपने को 'नौजवान भारत सभा' से भी सम्बद्ध रखा।

क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में

1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे और इसी वर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग़ काण्ड हुआ । इस काण्ड का समाचार सुनकर भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे। देश पर मर-मिटने वाले शहीदों के प्रति श्रध्दांजलि दी तथा रक्त से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, जिससे सदैव यह याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है ।

असहयोग आंदोलन का प्रभाव

1920 के महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर 1921 में भगतसिंह ने स्कूल छोड़ दिया। असहयोग आंदोलन से प्रभावित छात्रों के लिए लाला लाजपत राय ने लाहौर में 'नेशनल कॉलेज' की स्थापना की थी। इसी कॉलेज में भगतसिंह ने भी प्रवेश लिया। 'पंजाब नेशनल कॉलेज' में उनकी देशभक्ति की भावना फलने-फूलने लगी। इसी कॉलेज में ही यशपाल, भगवतीचरण, सुखदेव, तीर्थराम, झण्डासिंह आदि क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ। कॉलेज में एक नेशनल नाटक क्लब भी था। इसी क्लब के माध्यम से भगतसिंह ने देशभक्तिपूर्ण नाटकों में अभिनय भी किया। ये नाटक थे -

राणा प्रताप, भारत-दुर्दशा और सम्राट चन्द्रगुप्त।

वे 'चन्द्रशेखर आज़ाद' जैस महान क्रान्तिकारी के सम्पर्क में आये और बाद में उनके प्रगाढ़ मित्र बन गये। 1928 में 'सांडर्स हत्याकाण्ड' के वे प्रमुख नायक थे। 8 अप्रैल, 1929 को ऐतिहासिक 'असेम्बली बमकाण्ड' के भी वे प्रमुख अभियुक्त माने गये थे। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल भी की थी। वास्तव में इतिहास का एक अध्याय ही भगतसिंह के साहस, शौर्य, दृढ़ सकंल्प और बलिदान की कहानियों से भरा पड़ा है।

सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल का विरोध

विचार-विमर्श के पश्चात यह निर्णय हुआ कि इस सारे कार्य को भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु अंजाम देंगे। पंजाब के बेटों ने लाजपत राय के ख़ून का बदला ख़ून से ले लिया। सांडर्स और उसके कुछ साथी गोलियों से भून दिए गए। उन्हीं दिनों अंग्रेज़ सरकार दिल्ली की असेंबली में पब्लिक 'सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी। ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और सरकार इन्हें पास करने का फैसला कर चुकी थी। शासकों का इस बिल को क़ानून बनाने के पीछे उद्देश्य था कि जनता में क्रांति का जो बीज पनप रहा है उसे अंकुरित होने से पहले ही समाप्त कर दिया जाए।

असेम्बली बमकाण्ड

गंभीर विचार-विमर्श के पश्चात 8 अप्रैल 1929 का दिन असेंबली में बम फेंकने के लिए तय हुआ और इस कार्य के लिए भगत सिंह एवंबटुकेश्र्वर दत्त निश्चित हुए। यद्यपि असेंबली के बहुत से सदस्य इस दमनकारी क़ानून के विरुद्ध थे तथापि वायसराय इसे अपने विशेषाधिकार से पास करना चाहता था। इसलिए यही तय हुआ कि जब वायसराय पब्लिक सेफ्टी बिल को क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही किया भी गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला।

भगत सिंह और उनके साथियों पर 'लाहौर षडयंत्र' का मुकदमा भी जेल में रहते ही चला। भागे हुए क्रांतिकारियों में प्रमुख राजगुरु पूना से गिरफ़्तार करके लाए गए। अंत में अदालत ने वही फैसला दिया, जिसकी पहले से ही उम्मीद थी। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को मृत्युदंड की सज़ा मिली।

फाँसी की सज़ा

23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु देशभक्ति को अपराध कहकर फांसी पर लटका दिए गए। यह भी माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन जन रोष से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया। 'लाहौर षड़यंत्र' के मुक़दमें में भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा मिली तथा केवल 24 वर्ष की आयु में ही, 23 मार्च 1931 की रात में उन्होंने हँसते-हँसते संसार से विदा ले ली। भगतसिंह के उदय से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली वरन् नवयुवकों के लिए भी प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ। वे देश के समस्त शहीदों के सिरमौर थे। 24 मार्च को यह समाचार जब देशवासियों को मिला तो लोग वहां पहुंचे, जहां इन शहीदों की पवित्र राख और कुछ अस्थियां पड़ी थीं। देश के दीवाने उस राख को ही सिर पर लगाए उन अस्थियों को संभाले अंग्रेज़ी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेने लगे। देश और विदेश के प्रमुख नेताओं और पत्रों ने अंग्रेज़ी सरकार के इस काले कारनामे की तीव्र निंदा की।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है

भगतसिंह एक प्रतीक बन गया । साण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा । उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई । वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी

वह शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की यह पंक्तियां गाते थे

मेरा रंग दे बसंती चोला ।

इसी रंग में रंग के शिवा ने मां का बंधन खोला ॥

मेरा रंग दे बसंती चोला

यही रंग हल्दीघाटी में खुलकर था खेला ।

नव बसंत में भारत के हित वीरों का यह मेला

मेरा रंग दे बसन्ती चोला।

अंग्रेज़ों से बचने के लिए भगतसिंह ने भेष बदला। उन्होंने अपने केश और दाढ़ी कटवाकर, पैंट पहनी और हैट लगाकर अंग्रेज़ों की आंखों में धूल झोंक कर कलकत्ता पहुंचे। कुछ दिन बाद वे आगरा गए।

'हिन्दुस्तान समाजवादी गणतंत्र संघ' की केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'डिस्प्यूट्स बिल' के विरोध में भगतसिंह ने 'केन्द्रीय असेम्बली' में बम फेंकने का प्रस्ताव रखा। भगतसिंह के सहायक बटुकेश्वर दत्त बने।

पिस्तौल और पुस्तक भगतसिंह के दो परम विश्वसनीय मित्र थे।

जेल में पुस्तकें पढक़र ही वे अपने समय का सदुपयोग करते थे, जेल की कालकोठरी में उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी-

आत्मकथा, दि डोर टू डेथ (मौत के दरवाजे पर),

आइडियल ऑफ सोशलिज्म (समाजवाद का आदर्श),

स्वाधीनता की लड़ाई में पंजाब का पहला उभार।

भगतसिंह की शौहरत से प्रभावित होकर डॉ. पट्टाभिसीतारमैया ने लिखा है

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भगतसिंह का नाम भारत में उतना ही लोकप्रिय था, जितना कि गांधीजी का।

लाहौर के उर्दू दैनिक समाचारपत्र 'पयाम' ने लिखा था

हिन्दुस्तान इन तीनों शहीदों को पूरे ब्रितानिया से ऊंचा समझता है। अगर हम हज़ारों-लाखों अंग्रेज़ों को मार भी गिराएं, तो भी हम पूरा बदला नहीं चुका सकते। यह बदला तभी पूरा होगा, अगर तुम हिन्दुस्तान को आज़ाद करा लो, तभी ब्रितानिया की शान मिट्टी में मिलेगी। ओ ! भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव, अंग्रेज़ खुश हैं कि उन्होंने तुम्हारा खून कर दिया। लेकिन वो ग़लती पर हैं। उन्होंने तुम्हारा खून नहीं किया, उन्होंने अपने ही भविष्य में छुरा घोंपा है। तुम जिन्दा हो और हमेशा जिन्दा रहोगे।

"दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उलफत;

मेरी मिटटी से भी खुशबु-ए-वतन आयेगी ।

इन्कलाब जिंदाबाद

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शहीद सुखदेव

15 मई, 1907 को पंजाब के लायलपुर, जो अब पाकिस्तान का फैसलाबाद है, में जन्मे सुखदेव भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों 'लाहौर नेशनल कॉलेज' के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 'पब्लिक सेफ्टी' और 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' के विरोध में 'सेंट्रल असेंबली' में बम फेंकने के लिए जब 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' (एचएसआरए) की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगतसिंह ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आज़ाद ने उन्हें इज़ाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर जिंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगतसिंह ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।

अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुई थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगतसिंह की फांसी निश्चित है। इस पर भगतसिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की ज़रूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगतसिंह इस पर मुस्करा दिए। hबगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।

भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को हम सब की ओर से शत शत नमन !!

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शहीद राजगुरु

शहीद राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त,1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ था, जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है। उनके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी

आज़ादी का प्रण

राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1919 मेंजलियांवाला बाग़ में जनरल डायर के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समयभारत को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाये वह पीछे नहीं हटेंगे।

सुनियोजित गिरफ़्तारी

जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्स' को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था।

अदालत में बयान

अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी

प्रसिद्ध तिकड़ी (भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु )

राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी थी

राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गया था।

राजगुरु पर 'लाहौर षड़यंत्र' मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया।

फ़ाँसी का दिन

राजगुरु को भी 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया.

विशेष

इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था

वन्दे मातरम

मंगलवार, 22 मार्च 2011

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद ‘2010-2011’

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद 2010-2011

अध्यक्ष:

प्रा. मिलिन्द मराठे (मुंबई, महाराष्ट्र)

महामंत्री:

श्री उमेश दत्त (शिमला, हिमांचल प्रदेश)

उपाध्यक्ष

1. डा. पायल मागो (नई दिल्ली)

2. प्रा. किरण हजारिका (मुंबई, महाराष्ट्र)

3. डा. रजनीश शुक्ल (काशी, पूर्वी उत्तर प्रदेश)

4. श्री रवीरंजन सेन (प. बंगाल)

5. डा. रघु अकमंची (हुबली, कर्नाटक)

राष्ट्रीय मंत्री

1. श्रीरंग कुलकर्णी (नई दिल्ली)

2. सुश्री पारूल मंडल (हाबड़ा)

3. श्री सुरेन्द्र नाईक (नागपुर, महाराष्ट्र)

4. श्री अनिल कुमार (लखनउ, मध्य उ.प्र.)

5. श्री कडीयम राजू (हैदराबाद, आंध्र प्रदेश)

6. श्री मनीष यादव (जयपुर, राजस्थान)

7. श्री विमल मरांडी (दुमका, झारखंड)

राष्ट्रीय संगठन मंत्री

श्री सुनील आंबेकर (मुंबई, महाराष्ट्र)

राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री

1. श्री के. एन. रघुनंदन (बेंगलूरु, कर्नाटक)

2. श्री सुनील बंसल (नई दिल्ली)

केंद्रीय कार्यालय मंत्री

श्री लवीन कोटीयन (मुंबई, महाराष्ट्र)

केंद्रीय कोषाध्यक्ष

श्री श्याम अग्रवाल (जयपुर, राजस्थान)

केंद्रीय सह कोषाध्यक्ष

श्री महेश तेली (मुंबई, महाराष्ट्र)

विभिन्न अखिल भारतीय कार्य के प्रमुख

अखिल भारतीय छात्रा प्रमुख

सुश्री ममता यादव (रेवाड़ी, हरियाणा)

अखिल भारतीय जनजातीय छात्र प्रमुख

श्री प्रफुल्ल आकांत (रायपुर, छत्तीसगढ़)

अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान कार्य प्रमुख

श्री नागराज रेड्डी (बेंगलूरु, कर्नाटक)

अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान संयोजक

श्री आशीष चौहान (कर्णावती)

केंद्रीय सचिवालय मुंबई, सचिव

श्री भरत सिंह

अखिल भारतीय शील प्रकल्प संयोजक

श्री आशीष भावे (मुंबई, महाराष्ट्र)

विदेशी छात्र कार्य प्रमुख

श्री अनिकेत काले (पुणे, महाराष्ट्र)

विकासार्थ विद्यार्थी (SFD) प्रमुख

श्री मंत्री श्रीनिवास (हैदराबाद, आंध्रप्रदेष)

विकासार्थ विद्यार्थी (SFD) संयोजक

श्री कुणाल शाहा (कर्णावती)

अखिल भारतीय जनसंपर्क एवं मीडिया कार्यालय का कार्य

श्री श्रीरंग कुलकणी (नई दिल्ली)

शिक्षा में बदलाव की नई चुनौतियां

भारत में शिक्षा और ज्ञान, दान अथवा सेवा के क्षेत्र माने गये हैं। हमारा अतीत भारत को ‘विश्वगुरु’ जैसे विशेषण से सम्म्मानित करता है और मूल भारतीय समाज में ‘कृण्वन्तोविश्वमार्यं’ की अन्तरचेतना और उसका संकल्प जागृत करता है। यह एक आश्चर्यजनक किन्तु वास्तविक तथ्य है कि इसी कारण लम्बे समय तक गुलामी के चंगुल में फंसे रहने के बावजूद, मैकाले की शिक्षानीति थोपे जाते समय जहां ब्रिटेन की साक्षरता 6 प्रतिशत थी, वहीं भारत की 36 प्रतिशत। मैकाले ने उसी समय भारत के मद्रास और कलकत्ता केन्द्रों से संचालित शिक्षा पद्धति को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पद्धति घोषित कर ब्रिटेन में लागू करने की सिफारिश की थी, जिसे आज ‘मानिटोरियल पद्धति’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में उदारिकरण और भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया आरभ्भ होने के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आ गया है। पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों तक में बाजार प्रवेश पा रहा है, और इसी के फलस्वरुप सेवा के सारे क्षेत्र भी, व्यापार के क्षेत्र घोषित किये जा चुके हैं। दुनिया के तथाकथित विकसित देश शिक्षा के बाजार की होड़ में शामिल होने को लालायित हैं। उदारीकरण और भोगवाद से उत्पन्न महामन्दी के दौर में सेवा का क्षेत्र उनके लिये सम्बल साबित हो रहा है। सेवा के सभी क्षेत्रों में शिक्षा एक महत्वपूर्ण एवं शाश्वत क्षेत्र है। जब तक मनुष्य रहेगा शिक्षा की आवश्यकता बनी रहेगी और उस क्षेत्र में चलने वाला व्यापार निरन्तर गतिशील रहेगा। भारत जैसे देश में, जहॉं शिक्षा और ज्ञान को लेकर पारम्परिक पिपासा पायी जाती है, शिक्षा का कारोबार विकसित देशों को और अधिक सुहां रहा है।
विश्व व्यापार संगठन के ‘गैट्स’ प्रावधानों में तो देश की सम्प्रभुता के साथ ही संविधान और कानून-सबकी धज्जियॉं उड़ा दी है। इसने जनहित को ताक पर रखकर लोकहित का जो छलावा गढ़ा है, उसके मोहजाल में फॅंसकर कोई भी चौतन्य राष्ट्र स्वत्व व चेतना से विहीन होकर दरिद्रता के जबड़ों में दबकर छटपटाते हुए मृत्यु का शिकार हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसे में जब हम भारत के भ्रष्ट नेतृत्व, अधिकारी, लचर व्यवस्थाओं पर दृष्टिपात करते हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन की चुनौती और अधिक विकराल होकर सामने आती है। नेताओं, अधिकारियों, पूंजीपतियों और माफिया समूहों ने जिसप्रकार शिक्षा को माध्यम बनाकर देश की गरीब जनता को लूटने के उद्देश्य से मानो हमला बोल दिया हो, तब उम्मीद की लौ बुझती नजर आने लगती है।
सरकार की हवाई योजनाओं और निर्मम व्यवस्था ने देश के लाखों किसानों को आत्महत्या करने के लिये विवश किया है, अब मानो, छात्रों की बारी है। लोनिंग पॉलिसी में फॅंसकर भारत के कितने स्वाभिमानी छात्र-छात्रायें आत्महत्या कर सकते हैं, सरकार शायद इसी का परीक्षण करना चाहती है। अभी से लाखों रुपये खर्च कर इंजीनियरिंग और प्रबन्धन की पढ़ाई कर चुके हजारों नौजवान, इंजीनियर और प्रबन्धक बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। दिनोंदिन यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। अपने पाल्यों की कमाई के आस में बैठे लाखों गरीब अभिभावक निराश और हताश हैं। ऐसे में, शिक्षा क्षेत्र की चुनौती और भी अधिक भयावह भविष्य की ओर संकेत कर रही है।
व्यावसायिकता के राहु ने सरकारों की लोक कल्याणकारी भावनाओं को भी ग्रस लिया है। सरकारें अपने कर्तव्य से विमुख हो शिक्षा को धन्धा बना देने पर आमादा दिखायी देती है। सरकार द्वारा शिक्षा के निजीकरण की प्रवृति को लगातार बढ़ाने से सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी दिनोंदिन कम होती जा रही है और गरीब तथा मजबूर छात्रों से पैसे की अवैध वसूली के बल पर शिक्षा क्षेत्र की हर समस्या का समाधान ढूढ़ने की भयानक प्रवृति बढ़ रही है। शुल्क बेतहाशा बढ़ता जा रहा है और न्यायालय भी इन प्रवृतियों की अनदेखी कर, विरोध में आवाज उठाने वाले छात्रों, छात्र संगठनों और अभिभावकों इत्यादि को दोषी ठहराने में ही न्याय की इतिश्री समझ रहा है। आज आवश्यकता है तो शिक्षा को व्यापार बना देने की विकृत सोच पर चोट करने की।
एक ओर सरकार ‘सर्वशिक्षा अभियान’ चलाती है, ‘सबको शिक्षा का अधिकार’ कानून संसद में पारित करती है, छः से चौदह वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने की घोषणा करती है, तो दूसरी ओर उसी के द्वारा गरीब जनता से शिक्षा के नाम पर लूट-खसोट के रास्ते भी खोले जाते हैं। के.जीसे पी.जी. तक शिक्षा व्यापार और शोषण का माध्यम बन चुकी है। ऐसी परिस्थिति में छात्रों, शिक्षकों, शिक्षाविदों, अधिवक्ताओं और समस्त जागरुक अभिभावकों तथा शिक्षित समाज का यह दायित्व है कि वे शिक्षा के व्यापारीकरण की इस दुर्दांत प्रवृति के विरुद्ध उठ खड़े हों और एक व्यापक जनान्दोलन के द्वारा सरकार को इस पर अंकुश लगाने के लिए बाध्य कर दें।
शिक्षा में मूल्य, नैतिकता, संस्कार, परिश्रमशीलता के साथ ही कुशलता और गुणवत्ता का समावेश हो जिससे विदेशियों द्वारा भारतीयों और पूंजीपतियों, भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं तथा माफियाओं द्वारा देश की सामान्य जनता के लूट-खसोट की प्रवृति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके, और एक बार फिर भारत, शिक्षा के माध्यम से आध्यात्म, विज्ञान, गणित, चिकित्सा, तकनीकि, कृषि इत्यादि सभी क्षेत्रों में विश्व का सिरमौर बन शोषणमुक्त, समता-ममतायुक्त एकात्म विश्व की प्रस्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वाह कर सके।

सोमवार, 14 मार्च 2011

अभाविप ने की तृणमूल कांग्रेस की आलोचना

अभाविप ने की तृणमूल कांग्रेस की आलोचना
कोलकाता। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने अपने कार्यकर्ता नीरज कुमार के घायल चित्रों के तृणमूल कांग्रेस द्वारा प्रयोग पर कड़ी आलोचना की है। श्री कुमार अभाविप की कोलकाता कार्यसमिति के सदस्य हैं। वह पिछले दिनों जादवपुर विश्वविद्यालय में अलगाववादी नेताओं के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान एक अन्य छात्र संगठन के हिंसक हमले में घायल हो गए थे।

अभाविप की राष्ट्रीय मंत्री पारूल मंडल ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही इन चित्रों का उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि इसके लिए न तो श्री नीरज से और न ही अभाविप के किसी पदाधिकारी से अनुमति ली गई। तृणमूल कांग्रेस का यह कदम सर्वथा अनुचित है। दरअसल, पश्चिम बंगाल विधानसभा के आगामी चुनावों के मद्देनजर तृणमूल कांग्रेस ने सत्तारूढ़ सीपीएम कार्यकर्ताओं के हिंसक गतिविधियों में घायल हुए लोगों के चित्रों से युक्त पोस्टर व बैनर राज्य भर में लगवाएं हैं। इनमें से एक चित्र नीरज की भी है। पारूल मंडल ने कहा कि नीरज किसी राजनीतिक पार्टी के बीच हुई हिंसा का शिकार नहीं बल्कि जादवपुर विश्वविद्यालय में अलगाववादी नेताओं के विरोध में एक अन्य छात्र संगठन के हिंसक हमले में घायल हुए थे।

कोलकाता ब्यूरो। 09 मार्च 2011

राधिका हत्याकांड के विरोध में एबीवीपी का प्रदर्शन जारी

राधिका हत्याकांड के विरोध में एबीवीपी का प्रदर्शन जारी

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा राधिका तंवर की हत्या से गुस्साए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और डूसू द्वारा आयोजित बंद का असर नॉर्थ व साउथ कैंपस में खासा दिख रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में एबीवीपी के नेतृत्व में छात्रों का प्रदर्शन जारी है। एबीवीपी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि राधिका तंवर के हत्यारे को जल्द से जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया तो वह आंदोलन और तेज कर देगी। एबीवीपी ने छात्रों से अपील करते हुए कहा है कि राधिका को इंसाफ दिलवाने के लिए शुरू की गई इस मुहिम के साथ जुड़ें और इस बंद का समर्थन करें। एबीवीपी के प्रदेश मंत्री रोहित चहल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी अब अपराध की राजधानी बनकर रह गई है। लगातार हो रही हिंसक वारदातों ने दिल्ली सहित पूरे एनसीआर को हिलाकर रख दिया है और प्रशासन है कि अपनी नींद से जगने का नाम ही नहीं ले रहा है। वारदात को 4 दिन बीत गए हैं, लेकिन हत्यारा अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।

ज्ञातव्य़ है कि एबीवीपी और डूसू ने 11 और 12 मार्च को विश्वविद्यालय को बंद करने का ऐलान किया है। इसी सन्दर्भ में गुरुवार को विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली में कई जगह प्रदर्शन किया और प्रशासन व सरकार का पुतला भी फूंका।

राधिका हत्याकांड मामले में अभी तक केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है, जिसका नाम विक्टर है। लेकिन पुलिस को इससे कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी है। पुलिस इस मामले में रामलाल कॉलेज के एक छात्र को भी संदिग्ध मान रही है। विदित हो कि यह वही छात्र है जिसने तीन महीने पहले छात्रसंघ चुनाव के दौरान राधिका के साथ छेड़खानी की थी, जिससे गुस्साई राधिका ने उसको सरेआम थप्पड़ मार दिया था। इसके बाद उसने राधिका को देख लेने की धमकी दी थी। विदित हो कि नारायणा की रहने वाली राधिका तंवर (20) डीयू के साउथ कैंपस स्थित रामलाल आनंद कॉलेज में बीए प्रोग्रामिंग द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। मंगलवार को सत्य निकेतन बस स्टाप पर उतरने के बाद वह फुट ओवरब्रिज से होते हुए कॉलेज की तरफ जा रही थी। तभी सुबह करीब 10.25 बजे एक युवक ने पीछे से उसकी पीठ में गोली मार दी थी। इससे राधिका की मौके पर ही मौत हो गई थी। अवनीश। 11 मार्च 2011

शनिवार, 5 मार्च 2011

इस्तीफा दें प्रधानमंत्री : अभाविप

नई दिल्ली।4 march 2011/ ‘भ्रष्ट सरकार और घोटालों के लिए जिम्मेदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए। अपनी विश्वसनीयता खो चुकी केंद्र सरकार पर लग रहे आरोप एक-एक कर सही साबित हो रहे हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री की झूठी सफाई, यूपीए अध्यक्ष की चुप्पी देश की जनता के प्रति उनकी जिम्मेदारियों से भागने की मंशा दर्शा रही हैं। अब लीपा-पोती की मानसिकता के आधार पर जेपीसी गठन को मंजूरी, छापेमारी और दिखावटी गिरफ्तारियों की औपचारिकता को निभाने का काम कर रही है सरकार।”

उक्त बातें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री उमेश दत्त ने सरकार के खिलाफ भ्रष्टचार के मुद्दे पर प्रदर्शन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि यह मानना कि मंत्रिमंडल के लोग भ्रष्ट हैं और उनका आका यानि प्रधानमंत्री ईमानदार है पूर्णतः बेमानी होगा। उन्होंने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसायटी, राष्ट्रमंडल खेल तथा नये प्रकाश में आये एस-बैंड घोटालों पर लगातार ही तथ्य सामने आ रहे हैं, पर भी प्रधानमंत्री का नकारनामा उनकी सच्चाई को छुपाने की मंशा को प्रदर्शित करता है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख करते हुए उमेश दत्त ने कहा कि न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद पर पी.जे. थॉमस की नियुक्ति को अवैध करार दिया है। ऐसे में न्यायालय का निर्णय निश्चित ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी केंद्र सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार में डूबी यूपीए सरकार के खिलाफ अभाविप लगातार अपना विरोध जता रही है और इसी क्रम में आज संसद पर विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ताओं द्वारा उग्र प्रदर्शन किया गया। उन्होंने कहा कि अब अभाविप कार्यकर्ताओं के साथ देशभर के युवा सरकार की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ लामबंद हो रहे है।

अभाविप के इस राष्ट्रीय प्रदर्शन के दौरान एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी सौंपा जिसमें काले धन के मामले में सोनिया व राहुल गांधी के नाम पर विदेशी बैंको में खाते ना होने की प्रामाणिकता साबित करने के साथ ही विदेशी बैंकों में खाता रखने वाले लोगों के नाम सार्वजनिक किये जाने की मांग की गयी। ज्ञापन में अन्य घोटालों के बारे में स्थिति स्पष्ट करने की भी सरकार से मांग की गयी है।

प्रदर्शन का नेतृत्व अभाविप राष्ट्रीय महामंत्री उमेश दत्त, राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर, क्षेत्रीय संगठन मंत्री विष्णुदत्त शर्मा, अभाविप राष्ट्रीय मंत्री अनिल यादव, डूसू अध्यक्ष जितेंद्र चौधरी, उपाध्यक्ष नीतू डवास, महासचिव प्रिया डवास, राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष मनीष यादव तथा दिल्ली प्रदेश मंत्री रोहित चहल आदि सम्मिलित थे।

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

युवा शक्ति से होगा राष्ट्रीय समस्याओं का निराकरण

इलाहाबाद। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने देश के युवाओं से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने की अपील की है। शनिवार को माघ मेला स्थित महामना मदनमोहन मालवीय नगर में आयोजित अभाविप के 50 वें अधिवेशन के उद्घाटन के अवसर पर महामंत्री उमेश दत्त ने कहा कि परिषद भ्रष्टाचार के मुद्दे को जनमानस तक ले जायेगी और सरकार को निर्णायक कार्रवाई करने पर बाध्य करेगी। राष्ट्रमंडल खेल, टू-जी स्पेक्ट्रम और आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटालों में केन्द्र सरकार की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री अपने को असहाय बता रहे हैं। इससे वे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

दत्त ने कहा कि देश के सामने आतंकवाद, विदेशी घुसपैठ, बेरोजगारी, महंगाई, नक्सलवाद, शिक्षा का व्यापारीकरण सहित कई समस्याएं विकराल रुप धारण कर रही हैं। इन सारी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए युवा शक्ति को आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकारी सत्ता से देश की समस्याओं का निराकरण संभव नहीं है इसके लिए समाज बदलने की आवश्यकता है और वह समाज ऐसा हो जिसके हृदय में देश मेरा है और इस देश की समस्याओं का निजात दिलाना मेरा कर्तव्य है, इसका भाव कूट-कूट कर भरा हो। अभाविप की 61 वर्षों की विकास यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि परिषद ने अपने स्थापना काल से ही शिक्षा के भारतीयकरण के विषय को जोरदार तरीके से उठाया है। परिषद छात्रों की समस्याओं के लिए ही नहीं संघर्ष करती बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपनी आवाज बुलंद करती है। उन्होंने कहा कि अभाविप ने ‘छात्र आज का नहीं, कल का नागरिक’ है की धारणा को तोड़ते हुए यह साबित कर दिया है कि ‘छात्र कल का नहीं, अपितु आज का नागरिक’ है क्योंकि समाज की सभी प्रकार की समस्याओं से छात्र भी प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि देश को दिशा व दशा देने में पूर्वांचल का बहुत बड़ा योगदान रहा है। देश की वर्तमान समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए एक बार फिर बड़े आन्दोलन की आवश्यकता है जिसकी शुरुआत पूर्वांचल की धरती से ही होगा।

समारोह में परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. रजनीश शुक्ल ने कहा कि युवा वही है जिसके अन्दर देश के प्रति अटूट श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण व विवेक का ज्ञान हो जिसके बल पर वह जैसा चाहे वैसा परिवर्तन ला सकता है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रान्त के नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. विवेक निगम ने कहा कि अभाविप भारत का ही नहीं वरन् विश्व का सबसे अनोखा आदर्श छात्र संगठन है। इसके अनूठेपन का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि प्रवाहमान छात्रों का संगठन होते हुए भी 61 वर्षों से लगातार स्थाई रूप से कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी परिषद का उद्देश्य है कि देश में एक ऐसा आन्दोलन चलाया जाये जो समाज के अंदर एक नयी उर्जा का संचार कर सके। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजेन्द्र तिवारी व आभार ज्ञापन स्वागत मंत्री हेमन्त कुमार ने किया। इसके पूर्व उद्घाटन सत्र के स्वागताध्यक्ष विकाश चन्द्र त्रिपाठी ने अधिवेशन में आये परिषद के पदाधिकारियों व प्रतिनिधियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का उद्घाटन मां सरस्वती और स्वामी विवेकानन्द के प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मनोजकान्त, संतोष दत्त, डॉ. धर्मेन्द्र सिंह, अम्बरीश, भूपेन्द्र कुमार, सुधीर केशरवानी, श्याम नारायण, श्याम प्रकाश, आशुतोष, क्षिप्रा, देवेन्द्र, अनूप सहित अन्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

'राष्ट्रीय समस्याओं के हल के लिए एकजुट हों युवा'

इलाहाबाद। माघ मेला स्थित परेड ग्राउण्ड में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 50वें अधिवेशन के तीसरे दिन दो प्रस्ताव पारित किये गए। प्रस्ताव सत्र में ‘प्रदेश की वर्तमान स्थिति’ तथा ‘बाजारीकरण एवं भ्रष्टाचार के चंगुल में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था' विषय पर चर्चा के उपरांत सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किए गए।
प्रस्ताव सत्र में वक्ताओं ने महंगी हुयी शिक्षा व्यवस्था पर प्रदेश सरकार की नीतियों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि सूबे की सरकार शिक्षा के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में आज पूरी तरह से असफल है। राज्य में व्यापारिक हित से संचालित शिक्षण संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है जिनका एक मात्र मकसद छात्रों से फीस के नाम पर धनउगाही कर अपना लाभार्जन करना है। प्रस्ताव में कहा गया है कि बाजारीकरण के कारण लोकमंगल तथा लोककल्याण की भावना से शिक्षा संस्थानों के संचालन की प्राचीन परम्परा आज पूरी तरह से विलुप्त होती दिख रही है। अभाविप शिक्षा में बढ़ते बाजारवाद का तीव्र विरोध करते हुए समावेशी शैक्षिक तंत्र की स्थापना की पुरजोर मांग करता है। अभाविप ने पारित प्रस्ताव में रोजगार के लिए ठोस नीति बनाए जाने पर जोर दिया है तथा प्रथामिक स्तर पर अंग्रेजी की शिक्षा का विरोध करते हुए मांग किया है कि परिषद् का स्पष्ट एवं सुविचारित मत है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। परिषद् ने बोर्ड परीक्षा में केन्द्र निर्धारण में मानकों की अवहेलना को निष्पक्ष एजेन्सी से जांच करने तथा दोषियों को दण्डित कराने की भी मांग की है। वहीँ दूसरे प्रस्ताव में परिषद् ने कहा है कि देश की सबसे बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला यह प्रदेश आज महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, राजनेताओं द्वारा अत्याचार व दुराचार, राजनीति का अपराधीकरण, कानून व्यवस्था ध्वस्त, अपराधियों द्वारा नग्न ताण्डव, आतंकी विस्फोट, नक्सलवाद सहित अन्य समस्याओं के कारण आज जनता त्रस्त है जिसका परिषद् तीव्रक्षोभ व्यक्त करता है। अभाविप वक्ताओं ने युवा वर्ग से आह्वान किया है कि कुभ्भकर्णी नींद में सोयी हुई इस सरकार को जगाने तथा उपरोक्त समस्याओ के स्थायी व शीघ्र निवारण हेतु एक व्यापक जन संघर्ष के लिए तैयार हों।

मंगलवार, 1 मार्च 2011

भारत को मजबूत करने के लिए आगे आएं युवा : आंबेकर

बेंगलुरू। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्र के विकास के लिए युवाशक्ति को आगे आने का आह्वान किया है। सोमवार को परिषद के 56वें राष्ट्रीय अधिवेशन के भाषण सत्र के दौरान राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री सुनील आंबेकर ने कहा, “राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिये मन में एक प्रबल इच्छा शक्ति की जरूरत है और इस कार्य को सिर्फ युवा शक्ति ही कर सकती है।"
बेंगलूरू में आयोजित अधिवेशन के तीसरे दिन श्री आंबेकर ने कहा कि आज हम एक आजाद देश के नागरिक है। दुनियां भर के लोग इस बात को मानने लगे हैं कि भारत एक दिन विश्व शक्ति बनकर उभरेगा। ऐसे में भविष्य का भारत किस प्रकार का हो, इस विषय पर विचार करना आवश्यक है।
‘भविष्य के भारत की परिकल्पना’ विषयक भाषण सत्र में उन्होंने कहा कि आज हमारे पास एक आदर्श जीवन प्रणाली है, जिसमें थोडी बहुत कमियां हैं जिसे भौतिकवाद से दूर नहीं किया जा सकता है। इसे दूर करने के लिये युवाओं को जागृत करने की आवश्यकता है, इसलिये युवाओं के सबसे बडे संगठन होने के नाते विद्यार्थी परिषद की प्रासंगिकता सर्वकालिक है।
उन्होंने कहा कि हमें भारत को सुपर पावर बनाना है लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि हमारी सोच कैसी है और हमें अपनी शक्ति का उपयोग किस प्रकार करना है। हमें ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना को लेकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की परिकल्पना को साकार करना है। भारत में युवाओं की संख्या विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक है और युवा ही परिवर्तन की परिभाषा लिखते हैं। इसलिये इस देश के युवाओं को भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृत की जानकारी होना आवश्यक है।
श्री आंबेकर ने कहा कि देश की संस्कृति व सभ्यता के बिना अगर हम विकास की बात करते हैं तो यह असंभव है। राष्ट्र की मजबूती के लिये सर्वांगीण विकास की सोच को साकार रुप देने से ही भारत की समृद्धि संभव है। इसके लिये कुछ लोगों को अपना भविष्य और अपना कैरियर दांव पर लगाना होगा।
उन्होंने कहा कि भविष्य के भारत के परिकल्पना के लिये तीन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। पहला, भारत की पहचान क्या है? दूसरा, भारतीय संस्कृति का आधुनिक जीवन में योगदान क्या है? साथ ही इस विषय पर भी विचार करने की जरूरत है कि देश का राष्ट्रीय, सामाजिक सौहार्द कैसा हो? इसके आधार पर भविष्य का भारत के माडल की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। जिस तरह विश्व में तकनीकी और विज्ञान का विकास होगा, उस आधार पर इसके सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम आना स्वाभाविक है। इस पर अंकुश लगाने का कार्य हम युवाओं का है। इसलिये अभाविप कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी और भी बढ जाती है कि इस देश को अपनी संस्कृति के अनुरूप कैसे बनायें। श्री आंबेकर ने कहा कि हमारे लिये कोई लक्ष्य है तो वह है राष्टीय पुर्ननिर्माण। यह कार्य इस देश के युवा संगठन अभाविप द्वारा ही संभव है।Post templates