प्रस्ताव सत्र में वक्ताओं ने महंगी हुयी शिक्षा व्यवस्था पर प्रदेश सरकार की नीतियों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि सूबे की सरकार शिक्षा के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में आज पूरी तरह से असफल है। राज्य में व्यापारिक हित से संचालित शिक्षण संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है जिनका एक मात्र मकसद छात्रों से फीस के नाम पर धनउगाही कर अपना लाभार्जन करना है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि बाजारीकरण के कारण लोकमंगल तथा लोककल्याण की भावना से शिक्षा संस्थानों के संचालन की प्राचीन परम्परा आज पूरी तरह से विलुप्त होती दिख रही है। अभाविप शिक्षा में बढ़ते बाजारवाद का तीव्र विरोध करते हुए समावेशी शैक्षिक तंत्र की स्थापना की पुरजोर मांग करता है।
अभाविप ने पारित प्रस्ताव में रोजगार के लिए ठोस नीति बनाए जाने पर जोर दिया है तथा प्रथामिक स्तर पर अंग्रेजी की शिक्षा का विरोध करते हुए मांग किया है कि परिषद् का स्पष्ट एवं सुविचारित मत है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। परिषद् ने बोर्ड परीक्षा में केन्द्र निर्धारण में मानकों की अवहेलना को निष्पक्ष एजेन्सी से जांच करने तथा दोषियों को दण्डित कराने की भी मांग की है।
वहीँ दूसरे प्रस्ताव में परिषद् ने कहा है कि देश की सबसे बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला यह प्रदेश आज महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, राजनेताओं द्वारा अत्याचार व दुराचार, राजनीति का अपराधीकरण, कानून व्यवस्था ध्वस्त, अपराधियों द्वारा नग्न ताण्डव, आतंकी विस्फोट, नक्सलवाद सहित अन्य समस्याओं के कारण आज जनता त्रस्त है जिसका परिषद् तीव्रक्षोभ व्यक्त करता है।
अभाविप वक्ताओं ने युवा वर्ग से आह्वान किया है कि कुभ्भकर्णी नींद में सोयी हुई इस सरकार को जगाने तथा उपरोक्त समस्याओ के स्थायी व शीघ्र निवारण हेतु एक व्यापक जन संघर्ष के लिए तैयार हों।
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